कमी तेरी,बनकर नमी,
प्यासे मेरे मन की धरती को ,
करती है सराबोर ,
और दाग मेरे गुनाहों के,
धुल जाते हैं कभी-कभी।
कमी तेरी ,होकर भी अधूरापन ,
करती है मुझे पूरा,
भर कर जीवन का सूनापन।
कमी तेरी कोई कमी नहीं,
है ऐसे रंगों की दुनिया ,
जिससे मैंने रंगा है,
अपने ख्वाबों का आसमाँ,
और हकीकत की जमीन।
बहुत सुन्दर कविता।
ReplyDeleteLovely.
ReplyDeletetrue love needs not presence....it stays with you forever.....good poem...
ReplyDeleteकमी भी सब हो जाती है सच्चे प्यार में
ReplyDeleteभावविभोर करती रचना।
सुन्दर प्रस्तुति योगेश जी। पुनः सादर आग्रह के साथ निवेदन है कि आप मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों और अपने ब्लॉग पर अनुशरणकर्ता का विजेट भी लगाएं -
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग का लिंक www.rakeshkirachanay.blogspot.com